Subramanian Swamy Birthday: राम सेतु से कैलाश मानसरोवर तक की अद्वितीय उपलब्धियां
Subramanian Swamy Birthday: भारतीय राजनीति के दिग्गज नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री और प्रख्यात अर्थशास्त्री सुब्रमण्यम स्वामी का जन्म 15 सितंबर 1939 को चेन्नई, तमिलनाडु में हुआ। वह एक राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ कानून और विदेश नीति के मामलों में भी विशेषज्ञ माने जाते हैं। उनके जीवन से जुड़े कई ऐसे पहलू हैं, जो विवादों से घिरे रहे हैं, लेकिन उनकी स्पष्टवादिता और दृढ़ निश्चय ने उन्हें भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण चेहरों में से एक बना दिया है। स्वामी ने आपातकाल से लेकर राम जन्मभूमि तक, कई मुद्दों पर बेबाक राय रखी और जनता के हित के मामलों में वे अक्सर अपनी ही पार्टी के नेतृत्व की आलोचना करते रहे हैं।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सुब्रमण्यम स्वामी की शिक्षा दीक्षा भारतीय और विदेशी संस्थानों से हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद हार्वर्ड विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की। हार्वर्ड में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने “फ्रैक्टल ग्राफिकल एनालिसिस” पर महत्वपूर्ण शोध किया, जिससे उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान मिली। 1963 में स्वामी का शोधपत्र “नोट्स ऑन फ्रैक्टल ग्राफिकल एनालिसिस” इकोनोमेट्रिका में प्रकाशित हुआ, जो उस समय एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती थी।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
सुब्रमण्यम स्वामी का राजनीतिक सफर भी उतना ही दिलचस्प और प्रेरणादायक है। वह उन नेताओं में से एक थे, जिन्होंने आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार का विरोध किया और जनसंघ की स्थापना में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में उन्होंने विपक्ष के नेता होते हुए भी केंद्रीय मंत्री का पद संभाला, जो उनके राजनीतिक कद का प्रमाण था।
राम सेतु परियोजना और सफलता
सुब्रमण्यम स्वामी का नाम राम सेतु परियोजना से भी जुड़ा है। राम सेतु, जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, भारत और श्रीलंका के बीच एक पुरातात्विक पुल है। इस पुल को लेकर काफी विवाद रहा है, खासकर इसके संरक्षण और विकास के संदर्भ में। स्वामी ने इस परियोजना को रोकने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया और अंततः वे इसमें सफल रहे। उनका मानना था कि राम सेतु भारतीय सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहर का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे नष्ट करना उचित नहीं होगा।
कैलाश मानसरोवर यात्रा की शुरुआत
1981 में, सुब्रमण्यम स्वामी ने हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक और ऐतिहासिक कार्य किया। उन्होंने कैलाश मानसरोवर यात्रा का मार्ग खोलने के लिए चीन के तत्कालीन नेता देंग शियाओपिंग से मुलाकात की। इस बातचीत के परिणामस्वरूप, हिंदू भक्तों को कैलाश मानसरोवर यात्रा का रास्ता पुनः मिल गया। यह स्वामी की कूटनीतिक क्षमता का एक बेहतरीन उदाहरण था, जिससे उन्होंने दोनों देशों के बीच संवाद स्थापित किया और तीर्थयात्रियों को एक पवित्र स्थान तक पहुँचने का अवसर दिलाया।
अर्थशास्त्र और विदेश नीति में योगदान
सुब्रमण्यम स्वामी सिर्फ राजनीति में ही नहीं, बल्कि अर्थशास्त्र और विदेश नीति के क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण योगदान दे चुके हैं। 1990-91 के दौरान उन्होंने भारत के वाणिज्य और कानून मंत्रालय का कार्यभार संभाला। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और श्रम मानकों पर भी कई लेख लिखे, जो आज भी संबंधित क्षेत्रों में पढ़े जाते हैं। 1994 में, उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव द्वारा श्रम मानक और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। स्वामी की अंतर्राष्ट्रीय नीतियों पर गहरी पकड़ ने उन्हें वैश्विक मंच पर एक प्रमुख भारतीय नेता के रूप में स्थापित किया।
विवाद और स्पष्टवादिता
सुब्रमण्यम स्वामी हमेशा से ही विवादों से घिरे रहे हैं। वह अपने विचारों को स्पष्ट और निर्भीक तरीके से रखते हैं, चाहे वह उनकी अपनी पार्टी के खिलाफ ही क्यों न हो। स्वामी ने राम जन्मभूमि मुद्दे पर खुलकर अपनी राय रखी और हमेशा से हिंदुत्व से जुड़े मामलों पर मुखर रहे हैं। उनकी स्पष्टवादिता ने कई बार उन्हें पार्टी के अन्य नेताओं से भी टकराव की स्थिति में ला खड़ा किया, लेकिन उन्होंने कभी भी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया।
विदेशी भाषाओं में दक्षता
स्वामी की एक और विशेषता यह है कि उन्होंने कई विदेशी भाषाओं में भी महारत हासिल की है। खासकर चीनी भाषा मंदारिन को उन्होंने मात्र तीन महीनों में सीख लिया था, जो कि एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। यह उनकी सीखने की तीव्र क्षमता और वैश्विक दृष्टिकोण का परिचायक है।