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Sidhi news पूजा पार्क की कथा का सातवाॅ दिवस- रामराज्य की पहली सीढी है निषादराज- पं बाला व्यंकटेश

पूजा पार्क की कथा का सातवाॅ दिवस-रामराज्य की पहली सीढी है निषादराज- पं बाला व्यंकटेश


Sidhi news सर्वप्रथम व्यासपीठ का पूजा अर्चन एवं समिति के पदाधिकारी श्रीमती कुमुदिनी सिंह पार्षद, सुरेन्द्र सिंह बोरा, लालमणि सिंह चौहान बरिष्ठ अधिवक्ता, राजेन्द्र सिंह भदौरिया, अंजनी सिंह सौरभ आदि ने कथा प्रवक्ता पं बाला व्यंकटेश महराज वृन्दावनोपासक का माल्यार्पण से स्वागत अभिनन्दन किये। इसी अवसर पर सोंधी माॅटी लोनी बघेली साहित्यिक मंच सीधी के कवि आचार्य बृजमोहन योगी ब्रजेश की काव्य कृति “ज्ञान दीप वार दे” का महराज जी ने व्यासपीठ से विमोचन करते हुए रचनाकार को शुभकामना दिया।

कथा का शुभारंभ करते हुए महराज पं बालाव्यंकटेश ने कहा कि दशरथ जी अपना गुण एकान्त में तथा दोष समाज में देखते हैं लेकिन दशानन अपना गुण समाज में और दोष एकान्त में देखते हैं। यही दशरथ और दशानन में मूलभूत अंतर है। अतएव हम सब श्रोताओं को इस सूत्र का मंथन करना चाहिए  तभी कल्याण संभव है। आगे प्रसंग में महराज जी ने बताया कि दशरथ के जीवन में वैराग्य का माध्यम कैकेयी बनी है। महराज जी ने कहा कि कैकेयी ने जो त्याग किया है उसे संतजन महनीय मानते हैं।

क्योंकि अपने माॅग के सिन्दूर को दाव में लगाकर अपने चारो बच्चियों के सिन्दूर को बचाने का कार्य कैकेयी ने किया है। यह कहना कि राम को बनवास और भरत को राजगद्दी मागने की स्वार्थपरता ऊपर ऊपर की बात है। लेकिन भीतर का रहस्योद्घाटन कैकेयी को त्याग का प्रतिमूर्ति निरूपित करता है। महराज जी ने कहा कि मानस पटल पर सत्संग का प्रभाव विलम्ब से और कुसंग का कुप्रभाव त्वरित पडता है। मंथरा कुसंग की प्रतीक है। उसने कैकेयी को भ्रमित किया है कि  रामका राज्याभिषेक और कौशल्या को राजमाता की घोषणा होगी तथा भरत को कुछ नही मिलेगा। आगे के प्रसंग में महराज जी ने बताया कि दशरथ हैं

वेद, कौशल्या ज्ञान, कैकेयी क्रिया और सुमित्रा उपासना की प्रतीक है। फिर भी मंथरा ने कैकेयी का मन फेरकर यह  सिद्ध कर दिया कि दुख की जड़ है काम और सुख की जड हैं राम।तुलसीदास की चौपाइयों के गूढार्थ को सुस्पष्ट करते हुए एक प्रसंग में बाला व्यंकटेश महराज ने समझाया कि कोपभवन का ऐसा एक बिम्ब दिखता था मानो यहाॅ भूॅखी शेरनी है जिससे कैकेयी के समक्ष राजा दशरथ की दशा भीजी बिल्ली सी बन गई है। लेकिन काम के कारण कैकेयी की बात मानने को महराज दशरथ विवश हैं पराधीन हैं। तब बाबा को लिखना पडा है कि रघुकुल रीति सदा चल आई प्राण जाय पर बचन न जाई। महराज जी ने गंभीरतापूर्वक कहा कि कैकेयी भले बाहर से क्रूर दिखती है लेकिन भीतर से वह समुदार है। 

यदि समुदारता उसमें न होती तो महराज दशरथ को कोपभवन में भी प्राण प्रिय नही कहती। अनेक दुर्लभ प्रसंग और रामचरित मानस के गूढार्थ को कथा व्यास जी ने समुपस्थित श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिये। अगले प्रसंग में महराज जी ने कहा कि रामराज्य की पहली सीढी निषाद राज है। इसीलिए हमारे संतो और वेदाचार्यों का मानना है कि राम राज्य के चौदह सोपान हैं। जिसे हम चौदह वर्ष का वनवास कहा जाता है।   रामकथा में देश एवं प्रदेश के  कथा व्यास बाला व्यंकटेश महराज वृन्दावनोपासक ने अनेक गूढार्थ से सीधी के श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। श्रोताओं से पूरा पण्डाल आरती तक भरा रहा।

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