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Supreme Court में सुनवाई, शरीर के अंगों से मिलते जुलते चुनाव चिन्हों को निरस्त करने की मांग

Supreme Court में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल की गई है जिसमें मांग की गई है कि शरीर के अंगों से मिलते जुलते चुनाव चिन्हों को रद्द किया जाए। याचिका में कहा गया है कि यह आचार संहिता का उल्लंघन है। Supreme Court आज इस मामले की सुनवाई करेगा। याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने इस मुद्दे को चुनाव आयोग के सामने भी उठाया था, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई।

जनहित याचिका में चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है कि वह ऐसे चुनाव चिन्हों को हटा दे, फ्रीज कर दे और रद्द कर दे जो मानव शरीर के अंगों से मिलते जुलते हैं। याचिका में चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है।

Supreme Court में सुनवाई, शरीर के अंगों से मिलते जुलते चुनाव चिन्हों को निरस्त करने की मांग

Supreme Court की वेबसाइट पर प्रकाशित सूची के अनुसार, चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले की सुनवाई सोमवार को करेगी। याचिका में कहा गया है कि उन्होंने भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए मानव शरीर के अंगों से मिलते जुलते या उनसे मिलते जुलते चिन्हों के खिलाफ कई शिकायतें की थीं, लेकिन चुनाव आयोग ने इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की।

आचार संहिता का हवाला

याचिकाकर्ता का दावा है कि आचार संहिता में स्पष्ट रूप से मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार को रोकने का उल्लेख किया गया है और 1951 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 130 के तहत मतदान केंद्रों के 100 मीटर के भीतर चुनाव चिन्हों के प्रदर्शन पर प्रतिबंध है। लेकिन मानव शरीर के अंगों को छिपाया नहीं जा सकता है और यह आचार संहिता का उल्लंघन है।

याचिका में कहा गया है कि चुनाव चिन्हों का उपयोग इस तरह से किया जाना चाहिए जो आचार संहिता और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हो। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि चुनाव आयोग ने इस मामले में अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई और चुनाव चिन्हों को लेकर स्पष्ट दिशानिर्देश जारी नहीं किए हैं।

याचिकाकर्ता ने Supreme Court से अपील की है कि वह चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह शरीर के अंगों से मिलते जुलते चुनाव चिन्हों को तुरंत प्रभाव से हटा दे और आगामी चुनावों में उनका उपयोग न हो सके। इस मामले की सुनवाई आज होगी और Supreme Court के निर्णय का इंतजार रहेगा।

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