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Bhaiyya Ji Review: ‘Bhaiyya Ji’ की आभा में बदलाव, पर्याप्त नहीं थी एक व्यक्ति की जगह

गैर फिल्मी बैकग्राउंड से आए अभिनेता Manoj Bajpayee ने अपने दम पर अभिनय की दुनिया में अपनी पहचान बनाई। Bhaiyya Ji उनकी 100वीं फिल्म है। वह इस फिल्म के निर्माता भी हैं. ज्यादातर गंभीर, सार्थक और अर्थपूर्ण सिनेमा का हिस्सा रहे Manoj ने इस फिल्म को एक रिवेंज ड्रामा बनाया है।

इसमें उन्होंने काफी एक्शन किया है. सीमित बजट में बनी दीपक किंगरानी और अपूर्व सिंह कार्की द्वारा लिखित यह फिल्म पिछली सदी के आठवें दशक की उन फिल्मों की याद दिलाती है, जब अपनी मां के साथ अन्याय होने पर नायक का दिल बदले की आग से भर जाता था. ,

Bhaiyya Ji Review: 'Bhaiyya Ji' की आभा में बदलाव, पर्याप्त नहीं थी एक व्यक्ति की जगह

Bhaiyya Ji की कहानी क्या है?

फिल्म की शुरुआत बिहार में अधेड़ उम्र के रामचरण उर्फ Bhaiyya Ji (Manoj Bajpayee) और पूर्व राष्ट्रीय निशानेबाज मिताली (जोया अख्तर) की शादी की तैयारियों से होती है। Bhaiyya Ji अपने छोटे भाई वेदांत (आकाश मखीजा) से मोबाइल फोन पर बात कर रहे हैं जो दिल्ली में पढ़ रहा है और रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़कर अपने दो दोस्तों के साथ घर आने वाला है।

अगले दिन, उन्हें दिल्ली के कमला नगर पुलिस स्टेशन से फोन आता है कि उनके भाई का एक्सीडेंट हो गया है। वह तुरंत पुलिस स्टेशन आता है। वहां पहुंचने पर Bhaiyya Ji को पता चलता है कि वेदांत की मौत हो गयी है. तब वेदांत के दोनों दोस्त उसे बताते हैं कि स्थानीय ताकतवर चंद्रभान (सुरविंदर विक्की) के बिगड़ैल बेटे अभिमन्यु (जतिन गोस्वामी) ने उसे मार डाला है।

यहीं से Bhaiyya Ji के अतीत की परतें खुलती हैं और उनकी हकीकत सामने आती है। साधारण से दिखने वाले Bhaiyya Ji एक समय अपने क्षेत्र के कद्दावर नेता थे। उनकी कई कहानियां मशहूर हुईं. दो ताकतवर आमने-सामने आते हैं और शुरू होता है प्रतिद्वंद्विता का खेल.

डायलॉग्स तक सिमटा Bhaiyya Ji का भौकाल

फिल्म के टीजर में Bhaiyya Ji का भौकाल दिखाया गया था, जिसमें उन्हें मारने की बात होती है, तभी Bhaiyya Ji का पैर हिलता है और उनकी आंखें खुल जाती हैं और सभी भाग जाते हैं. हालांकि फिल्म में उनका भौकाल ज्यादातर डायलॉग्स में दिखाया गया है.

चंद्रभान खुद उस लड़की की हत्या कर देता है जिसने उसके बेटे और उसके वकील के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी। इस दृश्य संरचना के माध्यम से उसकी क्रूरता, निर्ममता और दबंगता को दिखाने का प्रयास किया गया, लेकिन इसे स्थापित नहीं किया जा सका। फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी इसकी कहानी और किरदार हैं।

चन्द्रभान की स्थिति अच्छी नहीं रही

कहानी नई दिल्ली और बिहार पर आधारित है। दिल्ली में चंद्रभान की स्थिति अच्छी नहीं रहती. कहानी जब बिहार में जाती है तो वहां की स्थानीय भाषा का कोई पुट नहीं मिलता. फिल्म दिल्ली से बिहार कब चली जाती है पता ही नहीं चलता. दोनों के बीच प्रतिद्वंद्विता में कोई उत्सुकता, दिलचस्पी या तनाव नहीं है.

आपसी मुठभेड़ में तलवारों, चाकुओं, पिस्तौलों तथा सभी प्रकार की बन्दूकों का बहुतायत में प्रयोग होता है। हिंदी फिल्मों के हीरो को मोटी चेन, हथौड़ी या भारी लोहे की रॉड ले जाते हुए देखा गया है, जबकि Manoj फावड़ा लिए नजर आते हैं, जो बिल्कुल भी रोमांचक नहीं लगता.

कमज़ोर लेखन के कारण पात्र प्रभावहीन हो गए

फिल्म का भार मुख्य रूप से अकेले आदमी Manoj के कंधों पर है, लेकिन वह इसे उठाने में सक्षम नहीं दिखता। भले ही इस समय शाहरुख खान, सलमान खान जैसे पचास पार के कई कलाकार एक्शन कर रहे हैं, लेकिन Manoj की अपनी खास पहचान और स्टाइल है, जो आड़े आता है।

उन्हें यहां एक्शन करने के मौके तो खूब मिलते हैं, लेकिन वह इसमें प्रभावी नजर नहीं आते। जोया के रूप में मिताली एक्शन में अच्छी लगती हैं। ये बात समझ से परे है कि उनके किरदार का वजन क्यों बढ़ गया है. सुविंदर विक्की को कोहरा वेब सीरीज से हिंदी दर्शकों के बीच पहचान मिली।

यहां उनका किरदार लेखन के स्तर पर कमजोर है, इसलिए वह भी इसे संभाल नहीं पा रहे हैं। मां के किरदार में भागीरथी बाई जरूर अच्छी लगी हैं. फिल्म में भोजपुरी गाने और म्यूजिक का इस्तेमाल किया गया है. कहानी की पृष्ठभूमि के लिए तो यह उपयुक्त है, लेकिन किरदारों में वह स्पर्श नजर नहीं आता.

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